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1857 के विद्रोह के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त हो गया और भारत सीधे ब्रिटिश क्राउन के अधीन आ गया। गवर्नर-जनरल का पद 'वायसराय' में बदल दिया गया, और कैनिंग पहले वायसराय बने।
उन्होंने विद्रोह को सफलतापूर्वक दबाया और विद्रोहियों के प्रति उदारता की नीति अपनाई, जिसके कारण उन्हें 'क्लीमेंसी कैनिंग' (दयालु कैनिंग) कहा गया।
इस अधिनियम ने 'पोर्टफोलियो प्रणाली' की शुरुआत की और भारतीयों को विधान परिषदों में गैर-सरकारी सदस्य के रूप में शामिल करने का प्रावधान किया।
डलहौजी द्वारा शुरू की गई इस नीति को समाप्त कर दिया गया, जिससे भारतीय राज्यों को उत्तराधिकारी गोद लेने की अनुमति मिल गई।
आधुनिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए लंदन विश्वविद्यालय के मॉडल पर इन तीन प्रमुख शहरों में विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई।
मैकाले द्वारा तैयार किया गया यह कोड कैनिंग के कार्यकाल में लागू किया गया, जिससे भारत में एक समान आपराधिक कानून प्रणाली स्थापित हुई।
उनके कार्यकाल में एक गंभीर अकाल पड़ा, जिसके बाद अकाल आयोग (Famine Commission) की स्थापना की गई।
भारत और यूरोप के बीच सीधी टेलीग्राफिक लाइनें स्थापित की गईं, जिससे संचार में सुधार हुआ।
अफगानिस्तान के प्रति एक सतर्क और गैर-हस्तक्षेपवादी विदेश नीति अपनाई गई।
किसानों के अधिकारों की रक्षा और भूमि राजस्व प्रणाली में सुधार के लिए अधिनियम पारित किए गए।
भारत में पहली बार व्यवस्थित जनगणना उनके कार्यकाल में हुई, हालांकि यह पूर्ण नहीं थी।
केंद्र और प्रांतों के बीच वित्तीय शक्तियों का विकेंद्रीकरण किया गया, जिससे प्रांतीय सरकारों को कुछ वित्तीय स्वायत्तता मिली।
भारतीय राजकुमारों और प्रमुखों के बच्चों की शिक्षा के लिए मेयो कॉलेज की स्थापना की गई।
कृषि और वाणिज्य को बढ़ावा देने के लिए एक नए विभाग की स्थापना की गई।
वह कार्यालय में मारे जाने वाले एकमात्र वायसराय थे, जिनकी 1872 में पोर्ट ब्लेयर में एक अफगान कैदी शेर अली आफरीदी ने हत्या कर दी थी।
इस अधिनियम के तहत, महारानी विक्टोरिया को 'भारत की साम्राज्ञी' (Empress of India) या 'कैसर-ए-हिंद' घोषित किया गया।
यह अधिनियम भारतीय भाषा के समाचार पत्रों पर प्रतिबंध लगाने और सरकार की आलोचना को दबाने के लिए लाया गया था, जिससे प्रेस की स्वतंत्रता पर अंकुश लगा।
इस अधिनियम ने भारतीयों के लिए हथियार रखना मुश्किल बना दिया, जबकि अंग्रेजों को छूट दी गई।
अफगानिस्तान के प्रति उनकी आक्रामक 'फॉरवर्ड पॉलिसी' के कारण यह युद्ध हुआ।
उनके कार्यकाल में एक गंभीर अकाल पड़ा, जिसमें लाखों लोग मारे गए। अकाल के बावजूद अनाज का निर्यात जारी रखने के लिए उनकी आलोचना की गई।
भारतीय सिविल सेवा परीक्षा में बैठने की अधिकतम आयु 21 से घटाकर 19 वर्ष कर दी गई, जिससे भारतीयों के लिए इसमें शामिल होना और कठिन हो गया।
उन्होंने लिटन के विवादास्पद अधिनियम को रद्द कर दिया, जिससे भारतीय प्रेस को स्वतंत्रता मिली।
उन्हें भारत में 'स्थानीय स्वशासन का जनक' माना जाता है। उन्होंने निर्वाचित स्थानीय निकायों की स्थापना को प्रोत्साहित किया।
इस अधिनियम ने बच्चों के काम के घंटे और कामकाजी परिस्थितियों को विनियमित किया, जिससे श्रमिकों के कल्याण में सुधार हुआ।
शिक्षा प्रणाली में सुधारों की जांच और सिफारिश करने के लिए एक आयोग नियुक्त किया गया।
इस बिल ने भारतीय न्यायाधीशों को यूरोपीय लोगों के मामलों की सुनवाई करने की अनुमति देने का प्रस्ताव दिया, लेकिन यूरोपीय समुदाय के कड़े विरोध के कारण इसे वापस लेना पड़ा।
उनके कार्यकाल में ए.ओ. ह्यूम द्वारा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई, जो भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुई।
इस युद्ध के परिणामस्वरूप पूरे बर्मा को ब्रिटिश भारत में मिला लिया गया।
अफगानिस्तान की सीमा पर रूसी और ब्रिटिश बलों के बीच एक राजनयिक संकट, जिसे डफरिन ने कूटनीति से हल किया।
प्रशासनिक सुविधा के नाम पर बंगाल का विभाजन किया गया, लेकिन इसका वास्तविक उद्देश्य बंगाली राष्ट्रवाद को कमजोर करना था, जिससे व्यापक विरोध हुआ।
भारतीय विश्वविद्यालयों पर सरकारी नियंत्रण बढ़ाने के उद्देश्य से यह अधिनियम पारित किया गया।
भारत की ऐतिहासिक विरासत की रक्षा और संरक्षण के लिए यह अधिनियम लाया गया।
पुलिस प्रशासन में सुधारों की सिफारिश करने के लिए एक आयोग नियुक्त किया गया।
लॉर्ड किचनर के साथ मिलकर सेना में महत्वपूर्ण सुधार किए।
उनके कार्यकाल में ढाका में ऑल इंडिया मुस्लिम लीग की स्थापना हुई, जिसने मुसलमानों के लिए अलग राजनीतिक पहचान की वकालत की।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस नरमपंथी और गरमपंथी गुटों में विभाजित हो गई।
इस अधिनियम ने विधान परिषदों का विस्तार किया और मुसलमानों के लिए अलग निर्वाचक मंडल (Separate Electorates) की शुरुआत की, जिसने भारत में सांप्रदायिकता के बीज बोए।
जनता के बढ़ते विरोध के कारण बंगाल के विभाजन को रद्द कर दिया गया।
भारत की राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित किया गया, जिसे 1912 में प्रभावी किया गया।
किंग जॉर्ज पंचम और महारानी मैरी के राज्याभिषेक का जश्न मनाने के लिए आयोजित किया गया।
भारत ब्रिटिश युद्ध प्रयासों में शामिल हुआ।
मदन मोहन मालवीय द्वारा हिंदू हितों की रक्षा के लिए स्थापित किया गया।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच एक ऐतिहासिक समझौता, जिसमें दोनों ने मिलकर स्वशासन की मांग की।
भारत सरकार अधिनियम, 1919 के रूप में लागू किया गया, जिसने प्रांतों में 'द्वैध शासन' (Dyarchy) की शुरुआत की और भारतीयों की भागीदारी बढ़ाई।
इस दमनकारी अधिनियम ने सरकार को बिना मुकदमे के लोगों को हिरासत में लेने की शक्ति दी, जिससे व्यापक विरोध हुआ।
रॉलेट एक्ट के विरोध में इकट्ठा हुए निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर जनरल डायर द्वारा गोलीबारी का आदेश दिया गया, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए।
गांधीजी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन शुरू हुआ।
इस हिंसक घटना के बाद गांधीजी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया।
मोतीलाल नेहरू और सी.आर. दास ने विधान परिषदों में प्रवेश कर ब्रिटिश सरकार का विरोध करने के उद्देश्य से स्वराज पार्टी का गठन किया।
हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) द्वारा की गई एक महत्वपूर्ण क्रांतिकारी घटना।
यह भारतीयों के लिए सिविल सेवा में शामिल होने का एक महत्वपूर्ण कदम था।
भारत में संवैधानिक सुधारों की समीक्षा के लिए एक सर्व-श्वेत आयोग का गठन, जिसका भारतीयों ने व्यापक विरोध किया।
भारतीयों द्वारा अपने संविधान का मसौदा तैयार करने का पहला प्रमुख प्रयास, मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में।
गांधीजी द्वारा नमक कानून तोड़ने के साथ सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत हुई।
भारत के संवैधानिक भविष्य पर चर्चा के लिए लंदन में आयोजित किया गया, कांग्रेस ने इसमें भाग नहीं लिया।
सविनय अवज्ञा आंदोलन को समाप्त करने और दूसरे गोलमेज सम्मेलन में कांग्रेस की भागीदारी के लिए गांधीजी और इरविन के बीच एक समझौता।
दूसरे सम्मेलन में गांधीजी ने भाग लिया, लेकिन सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व के मुद्दे पर गतिरोध बना रहा। तीसरे सम्मेलन में कांग्रेस ने भाग नहीं लिया।
ब्रिटिश प्रधान मंत्री रामसे मैकडोनाल्ड द्वारा अल्पसंख्यकों के लिए अलग निर्वाचक मंडल की घोषणा, जिसका गांधीजी ने विरोध किया (पूना पैक्ट द्वारा संशोधित)।
गांधीजी और बी.आर. अंबेडकर के बीच समझौता, जिसने दलित वर्गों के लिए अलग निर्वाचक मंडल के बजाय आरक्षित सीटों का प्रावधान किया।
इस अधिनियम ने प्रांतीय स्वायत्तता की शुरुआत की, केंद्र में द्वैध शासन को समाप्त किया और अखिल भारतीय संघ की स्थापना का प्रस्ताव रखा (जो कभी लागू नहीं हुआ)।
भारत को बिना किसी परामर्श के युद्ध में शामिल किया गया, जिससे कांग्रेस मंत्रालयों ने इस्तीफा दे दिया।
युद्ध में भारतीय सहयोग के बदले में वायसराय द्वारा डोमिनियन स्टेटस और एक संविधान सभा का वादा, जिसे कांग्रेस ने अस्वीकार कर दिया।
ब्रिटिश सरकार द्वारा युद्ध के बाद डोमिनियन स्टेटस और एक संविधान सभा का प्रस्ताव, जिसे कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों ने अस्वीकार कर दिया।
गांधीजी द्वारा 'करो या मरो' के आह्वान के साथ शुरू किया गया एक व्यापक जन आंदोलन।
उनके कार्यकाल में एक और गंभीर अकाल पड़ा, जिसमें लाखों लोग मारे गए।
सी. राजगोपालाचारी द्वारा कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच गतिरोध को तोड़ने का प्रयास, जिसे जिन्ना ने अस्वीकार कर दिया।
वायसराय की कार्यकारी परिषद के भारतीयकरण पर चर्चा के लिए आयोजित किया गया, लेकिन सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व पर गतिरोध के कारण विफल रहा।
भारत को सत्ता के हस्तांतरण के लिए एक योजना प्रस्तुत की, जिसमें एक संघीय संरचना और एक संविधान सभा का प्रस्ताव था।
मुस्लिम लीग द्वारा पाकिस्तान की मांग के समर्थन में बड़े पैमाने पर हिंसा और दंगे हुए।
जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में एक अंतरिम सरकार का गठन किया गया।
भारत के विभाजन और सत्ता के हस्तांतरण के लिए योजना प्रस्तुत की, जिसमें भारत और पाकिस्तान के रूप में दो स्वतंत्र डोमिनियन बनाने का प्रावधान था।
ब्रिटिश संसद द्वारा पारित किया गया, जिसने 15 अगस्त, 1947 को भारत और पाकिस्तान को स्वतंत्रता प्रदान की।
योजना के अनुसार, भारत को दो स्वतंत्र राष्ट्रों में विभाजित किया गया, जिसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर विस्थापन और सांप्रदायिक हिंसा हुई।
रियासतों को भारत या पाकिस्तान में शामिल होने का विकल्प दिया गया, और अधिकांश को सरदार पटेल के प्रयासों से भारत में एकीकृत किया गया।
भारत की स्वतंत्रता के बाद भी वह जून 1948 तक स्वतंत्र भारत के पहले गवर्नर-जनरल के रूप में बने रहे।